औरत
क्यु हम औरत जी नहीं पाती,
खुल के भी बोल नही पाती,
मुष्किल कितनी भी हो
हसकर भुल जाती हैं,
दर्दे दिल बया नहीं कर पाती,
गम के घुट पी कर भी जी लेती है,गम सह कर भी जी लेती है,
मुस्कुरा ना जैसे सीख लिया है,
दर्द आखो से कहाँ भी,
तो कोई देख नहीं पाया,
नम सी आखे बस खामोश सी,
रह जाती है,
लब पर बातें आकर थम सी जाती है,
क्यु हम औरत जी ।
Jeetal Shah
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